Friday 7 December 2018

Rahul Yadav

टहनी से एक फूल गिरा और, गिर कर पंहुचा राहों में
कुचला सबने बारी बारी, आया क्यों वो निगाहों में।
सबको किस्मत से है शिकायत, सब अपनों से खफा लगते हैं
वफादारी निभाते देखा न किसी को,खुद को ही सब यहाँ ठगते हैं।
वो राहें वो मंजर फिर से बुलाते हैं मुझे,साथ गुज़ारे पल बहुत याद आते हैं मुझे
जिस को भी चाहा दिल से समझा अपना, ना जाने क्यों राह में छोड़ जाते हैं मुझे|
तेरे ग़म से ऐ दोस्त अनजान नहीं हूं मैं,तेरा अपना हूँ कोई मेहमान नहीं हूं मैं
कहने को कहो कुछ भी सह लूँगा सब मगर, इतना जरूर है दोस्त नादान नहीं हूं मैं।





दुआ बद्दुआ बन जाती है, जब तकदीर बेवफा हो जाये।
उससे सारी खुदाई रूठ जाती है, जिसका अपना दिल दुश्मन हो जाये !!
मुझे भी आ गया जीना, ये जबसे चोट खाई है !
गमों संग अच्छा लगता है , खुशी लगती पराई है !!
हर नजर को तुम चाहते हो, चाहत क्या होती है समझाओं हमे 
हम तो बेवफा हैं सागर, वफा क्या होती है समझाओं हमे ॥
दिलजला कहते हैं लोग मुझे, जख्म मुहब्बत में मैंने खाये हैं।
जो हमें बेवफा कहते हैं दोस्त, उनके लिये खून के आंसू बहाये हैं ।
वफ़ा का नाम लेकर दोस्त, वो बेवफाई का खंजर आजमाते हैं ॥
जख्मी दिल है पास मेरे, वो फिर भी ठेस पहुंचाते है।
मुझे भी चोट लगती है, मुझे भी दर्द होता है
तो पत्थर भी है रो पड़ता, ये दिल जब मेरा रोता है ।
वो देता राम रहा मुझको, न जिद मैंने भी छोड़ी है
कमा कर राम की ये दौलत, यूं भर रखी तिजौरी है ।
ज़रा सी आहट होती है, तो तेरा ख्याल आता है
ज़रा मुझको भी बतलाना, कि कै सा भूला जाता है ।
बहुत रोती हैं ये आंखें, ये दिल भी रोता है मेरा
न बाकी कु छ रहा मुझमें , न बिगड़ा कु छ सनम तेरा।
कहा था लोगों ने मुझसे, न दिल उनसे लगाना तुम
हुआ क्या हाल फिर सागर, न ये ह मको बताना तुम।
दिल के किसी कोने में रहता हूं मैं, ना दिल लगाना तुम सबसे कहता हूं मैं
मैं हूं प्यार जो ग़र रूठ जाए तो, बनके अश्क आंखों से बहता हूं मैं।
ना भूला न भूलूँगा तुमको कभी, तुम्हे दिल में बसाया है मैंने सनम
तुम न देना कभी अश्क मुझको यहाँ,बहुत खुद को रूलाया है मैंने सनम।
भले आज बदल डाला खुद को मगर,यह सच्च है कि मुझको भी प्यार था कभी
ना कोई संकोच है ये कहने में मुझको,कि मुझको भी उनका इंतजार था कभी।
भले लाख कर लो कोशिश भी मगर,दिल की बात कही न जायेगी मुझसे
ऐ मेरे हमदम न होना जुदा क भी,तेरी जुदाई सही न जायेंगी मुझसे |
ये पत्थरों का शहर है सारा,किसी को किसी की पहचान नहीं
रहते हैं यहाँ शैतान ही अब,यहाँ बचा कोई भी इन्सान नहीं।
हमसे वो रिश्ता निभाया न गया,दर्द दिल का भी उनसे छुपाया न गया
हम जानते थे कि वो चाहते हैं हमें,चिराग मुहब्बत का हमसे जलाया न गया।
ग़र मुझको इजाजत तुम दे दो,एक मुलाकात ही कर लेंगे
मन को समझाना ही तो है,हम दिन को रात ही कर लेंगे।

Rahul Yadav Azamgarh 
Rahulyaadav.blogspot.com 

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